संवाददाता - सन्तोष उपाध्याय
लखनऊ: राजधानी में कांशीराम स्मारक स्थल पर गुरुवार को बहुजन समाज पार्टी बसपा की सुप्रीमो मायावती द्वारा आयोजित महारैली ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में हलचल मचा दी है। यह रैली बसपा संस्थापक कांशीराम की 19वीं पुण्यतिथि पर आयोजित की गई थी, जो 2027 के विधानसभा चुनावों से ठीक डेढ़ साल पहले पार्टी के लिए एक महत्वपूर्ण 'करो या मरो' का नारा देने का मौका साबित हुई। पार्टी ने दावा किया कि इसमें 5 लाख से अधिक कार्यकर्ता और समर्थक जुटे, जो यूपी के कोने-कोने से आए थे। यह 2021 के बाद मायावती की पहली ऐसी मेगा रैली थी, जो दलित- मुस्लिम- पिछड़े पीडीए वोट बैंक को फिर से एकजुट करने का प्रयास था। लेकिन क्या यह रैली बसपा को नई ऊर्जा दे पाई, या फिर यह सिर्फ एक अस्थायी उत्साह था? आइए, इसकी राजनीतिक समीक्षा करें।
कांशीराम स्मारक स्थल पुरानी जेल रोड पर सुबह 9 बजे शुरू हुई रैली में मायावती ने कांशीराम की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। यह जगह बसपा के लिए प्रतीकात्मक है, जहां 2007 की जीत के बाद पार्टी ने कई सफल आयोजन किए। तारीख (9 अक्टूबर) भी रणनीतिक थी, 'कांशीराम की पुण्यतिथि' जो दलित कार्यकर्ताओं को भावुक रूप से जोड़ती है।
पार्टी ने एक महीने पहले से कैडर मोबिलाइजेशन शुरू किया। आकाश आनंद (मायावती के भतीजे और राष्ट्रीय समन्वयक) ने युवा नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी। लखनऊ नीले पोस्टरों, झंडों और 'आई लव बसपा' आदि बैनरों से पट गया। एक्स फेसबुक इंस्टा आदि तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर #बहनजी_का_संदेश ट्रेंडिंग में रहा। जहां नेताओं/ कार्यकर्ताओं ने पांच लाख की भीड़ का जिक्र किया।
मायावती के अलावा आकाश आनंद, आनंद कुमार, सतीश चंद्र मिश्रा और नौशाद अली जैसे प्रमुख नेता मंच पर थे। यह बसपा के 'सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय' फॉर्मूले को री-लॉन्च करने का संकेत था।
मायावती ने करीब 3 घंटे मंच पर रहकर कार्यकर्ताओं को संबोधित किया, जो उनके 'नए अंदाज' का हिस्सा था। भाषण में उन्होंने 2027 चुनावों के लिए 'अकेले लड़ने' का ऐलान किया, साथ ही गठबंधनों को 'सरकार तोड़ने वाला' बताते हुए गठबंधन की राजनीति को खारिज किया। पार्टी की मुख्य थीम 'आरक्षण और सामाजिक न्याय', 'प्रमोशन में आरक्षण' को प्रभावी बनाने, 'दलित-मुस्लिम-पिछड़ों' के विकास पर जोर देते हुए कहा, "आरक्षण का पूरा लाभ नहीं मिला, संविधान को बचाना होगा।" विरोधी दलों पर हमला करते हुए उन्होंने सपा-कांग्रेस को 'जातिवादी' और 'PDA को भूलने वाला' बताया। सपा के सत्ता काल में स्मारकों की लापरवाही का जिक्र किया। बीजेपी पर अप्रत्यक्ष रूप से कानून-व्यवस्था और बेरोजगारी पर निशाना साधा, लेकिन योगी सरकार की स्मारक मरम्मत की तारीफ की जिसे विपक्ष खासकर सपा मुखिया अखिलेश यादव ने बसपा भाजपा के बीच अंदरूनी 'गठजोड़' का सबूत करार दिया।
आकाश आनंद का रोल मायावती ने आकाश को 'युवा चेहरा' बताते हुए बूथ-स्तरीय एकीकरण की जिम्मेदारी सौंपी। आकाश ने कहा, यूपी में पांचवीं बार बसपा सरकार बनेगी। यह भाषण बसपा के मूल 'बहुजन' एजेंडे पर लौटने का प्रयास था लेकिन सपा पर ज्यादा फोकस ने इसे 'विपक्षी एकता तोड़ने' का हथियार बना दिया।
रैली ने यूपी की सियासत को कई मोर्चों पर हिला दिया। यहां एक तुलनात्मक विश्लेषण किया जा सकता है।
सकारात्मक प्रभाव: दलित कोर (जाटव) में जोश आने से पीडीए वोट का कुछ हिस्सा सपा के पाले से बसपा की ओर आ सकता है। बता दें कि 2024 लोकसभा में बसपा का 9.4% वोट शेयर ही था। अकेले चुनाव लड़ने के ऐलान से पार्टी का का कैडर खासकर युवा उत्साह में है।
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